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भूतो से प्रेरणा..

Truth..The Reality
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एक बार की बात है, सर्दियों के दिन थे, हम अपने एक मित्र की शादी से आ रहे थे, और सीधे अपने घर जा रहे थे. शायद रात के १२ बजे होंगे, शहर के सभी लोग सो रहे थे, और कुत्ते भी भौकने के बजाय रो रहे थे. हम सुनसान सड़क से चले जा रहे थे. अकेले थे इसलिए घबरा रहे थे और मन ही मन में हनुमान चालीसा भी गा रहे थे.

तभी अचानक सामने से एक भूतो का ग्रुप आता हुआ नजर आया, में भागने ही वाला था की एक भूत चिल्लाया, ठहर जा कहाँ भागता है रात के १२ बजे है फिर भी जगता है, जानता नहीं इस वक़्त तो सारा संसार सोता है ये तो हम भूतों के जागने का वक़्त होता है. तू कहाँ से आ रहा है और कहाँ जा रहा है. भूतों को खड़ा देख सामने हम इतना घबराय की मूंह से दो शब्द से बाहर नहीं आये.

इतने में एक भूत फिर से चिल्लाया, उस्ताद मजा आ गया मुझे तो इसका सेंट पसंद आ गया. इसकी खुशबू क्या कमाल है, लगता हे फ़ौरन का माल है. ऐसी बातें सुनकर हमने डरते डरते उनसे पुछा .. सेंट, क्या भूत भी सेंट लगाते है. इतना सुनते ही भूत को गुस्सा आ गया और वो बड़े जौर से चिल्लाया, क्यूँ बे तुने क्या समझा है सेंट इंसानों की जायदाद है अबे हम भूतों की नगरी भी बड़ी आबाद है, हम सेंट, cream , पावडर सब लगते है और सच बताऊँ तुझे सुबह शाम लक्स साबुन से नहाते है. चल जा अपने घर जा और देर रात यूँ घर से बहार मत निकला कर.

इतना सुन कर तो हममे भी कुछ हौसला आया और हमें अपने और भूतो में ज्यादा फर्क नहीं नजर आया इसीलिए चलते चलते हमने एक भूत से पुछा, भूत भाई एक बात तो बताओ, हमने तो सुना है की भूत इंसानों को मार डालते है उन्हें खा जाते है और आप मुझे जाने के लिए कह रहे हो….
इतना सुनते ही भूत को फिर गुस्सा आ गया और वो फिर बड़े जोर से चिल्लाया, बस चुप कर इक्कीसवी सदी के सड़े हुए आदमी. सारे बुरे काम तो खुद करता है और बेकार में हम भूतों को बदनाम करता है. सचाई तो ये है की आज तक किसी भूत ने किसी आदमी को नहीं मारा, वो तो आदमी है जो आदमी को मारने को तैयार है बता आज की दुनिया में किस आदमी का ऐतबार है. आज का आदमी भी कोई चीज है अगर कुछ है तो सिर्फ बदतमीज है. आज का आदमी किसी से प्यार नहीं करता , गैरो की तो छोड़ दे वो तो अपनों की मदद नहीं करता. सिर्फ पैसे के लिए जीता है और सिर्फ पैसे के लिए मरता है. पैसे ही खाता है और सिर्फ पैसे से ही प्यार करता है. जा चला जा और चुप चाप अपने घर जा कर सो.

में वहां से चला तो आया पैर दिल में एक दर्द लिए, की क्या सच में ऐसे हो गया है, की क्या सच में आज के आदमी का जमीर सो गया है, या उसका खून पानी हो गया है. आखिर ऐसा क्या हो गया है की आज का आदनी किसी से प्यार नहीं करता, किसी का ऐतबार नहीं करता…शायद इसका कोई जवाब नहीं है मेरे पास अभी, पर फिर भी मुझे उम्मीद है की ये बुरे दिन गुजर जायंगे और बुराइयों के बादल भी छंट जायंगे, फिर खुशियों की बहार आयगी, और प्यार का संदेसा लायगी . बस एक आस जगाने की जरूरत है बस एक हाथ बढ़ाने की जरूरत है. तो आओ यारो मिल कर एक दीप जलाय और इसे प्यार, स्नेह और आदर से महकाए. अपनी इस कविता के माध्यम से में बस यही कहना चाहता हूँ की आओ हम सभी एक प्राण ले की आज से हर दिन चंद पल ऐसे बिताएं जब हम किसी की बुराई न करे और किसी से द्वेष और घ्रणा न करे…..

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