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कितनी अजीब सी बात है ना, की जितना हम अपने घर और सामान से प्यार करते है उतना ही शायद सरकारी सामान से नफ़रत. शायद इसीलिए कोई भी समस्या या परेशानी हो सबसे पहले हम सरकारी सामान को ही नुकसान पहुचाते है.
मतलब अगर हमारे घर मे बिजली नही आती तो गुस्से मे हम सड़को पर लगी ट्यूबलाइट और बल्ब तोड़ते है और फिर सरकारी ट्रॅन्सफॉर्मर को जलाते है
बसो की हड़ताल से परेशान हो तो सबसे पहले सरकारी बसो और वाहनो को आग लगते है.
अगर हमारे घरो मे पानी ना आए तो सबसे पहले सरकारी नलो को तोड़ते है.
अगर महगाई की समस्या पर धरना देना हो तो सबसे पहले सरकारी गोदामो मे आग लगाते है.
अगर curruption (actually सही spelling है corruption, पर अगर सही spelling लिख दी तो वो corruption कहां रहा ) से परेशान हो तो सबसे पहले सरकारी स्कूल और दफ़्तर मे आग लगते हैं.
अगर आपके शहर ट्रेन सही समय पर नही आती है तो विरोध का सबसे सिंपल तरीका है की ट्रेन रोको आंदोलन करो. ट्रेन के आगे जाम लेगा दो.
समझ नहीं आता, क्या हासिल करना चाहते है हम इससे, अपनी समस्याओं के लिए अपना ही नुक्सान…अरे भाई लोगो अगर प्रदर्शन करना ही है तो उन भ्रष्ट क्रमचारियों और नेताओं के घरो के सामने करो जो इसकेलिए जिम्मेदार है अपना नुक्सान करने से क्या फायदा …
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